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*"निकाह"*
और
*"जनाजा"*

के फर्क को शायर ने
कितनी खूबसूरती से
पेश किया हे ~

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तेरी डोली उठी
मेरी मय्यत उठी
फूल तुझ पर भी बरसे
फूल मुझ पर भी बरसे
फर्क सिर्फ इतना सा था
कि तू *सज* गयी
ओर
मुझे *सजाया* गया
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तू भी घर को चली
मैं भी घर को चला
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू *उठ* कर गयी
ओर
मुझे *उठाया* गया
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महफिल वहां भी थी
लोग यहां भी थे
फर्क सिर्फ इतना सा था
उनका *हंसना* वहां
इनका *रोना* यहां
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काजी उधर भी था
मौलवी इधर भी था
दो बोल तेरे पढ़े
दो बोल मेरे पढ़े
तेरा _निकाह_ पढ़ा
मेरा _जनाजा_ पढ़ा
फर्क सिर्फ इतना सा था
तुझे *अपनाया* गया
मुझे *दफनाया* गया

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