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भ्रष्टाचार निवारण विधेयक :पृष्ठभूमि एवं प्रावधान

अस्सी के दशक में उजागर हुए भ्रष्टाचार के कारण एवं उपचार के लिए एन.एन. बोहरा कमिटी 1993 में भारत सरकार के द्वारा नियुक्त किया गया। एन.एन. बोहरा कमिटी रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि देश के अन्दर अपराधिक गैंग, पुलिस अफसर एवं राजनीतिज्ञ देश के अन्दर भ्रष्टाचार में संलिप्त है। मौजूदा अपराधिक कानूनी प्रावधान भ्रष्टाचार को रोकने में भ्रष्टाचार निवारण विधेयक :पृष्ठभूमि एवं प्रावधान

अस्सी के दशक में उजागर हुए भ्रष्टाचार के कारण एवं उपचार के लिए एन.एन. बोहरा कमिटी 1993 में भारत सरकार के द्वारा नियुक्त किया गया। एन.एन. बोहरा कमिटी रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि देश के अन्दर अपराधिक गैंग, पुलिस अफसर एवं राजनीतिज्ञ देश के अन्दर भ्रष्टाचार में संलिप्त है। मौजूदा अपराधिक कानूनी प्रावधान भ्रष्टाचार को रोकने में काफी नहीं है क्योंकि अपराधिक कानूनी प्रावधान के अन्तर्गत व्यक्तिगत अपराध को रोकने का सशक्त प्रावधान है लेकिन अपराधियों को विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले अपराधिक चरित्र के पदाधिकारी, पुलिस राजनीतिज्ञ एवं अपराधियों के मिलीभगत से भ्रष्टाचार के व्यापार को आगे बढ़ाया गया है। इसमें सिंडिकेट माफियागिरोह एवं असामाजिक तत्वों की साठ-गांठ मुख्य भूमिका रहती है। जिनका गठजोड़ सरकारी महकमे से सीधे तौर पर बना रहता है और कुछ राजनीतिज्ञ इन भ्रष्टाचारियों को संरक्षण प्रदान करते हैं।
भ्रष्टाचार का मुद्दा वर्तमान में एक वैश्विक मुद्दा बन गया है। इस सवाल को लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव कौफी-अनान ने एक कंवेशन आयोजन करके यह स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार का प्लेग पूरे दुनिया में बड़े पैमाने पर सामाजिक मूल्यों को तोड़ रहा है तथा इसके कुप्रभाव से पूरे विश्व का सामाजिक एवं आर्थिक संतुलन खतरे में पड़ गया है जिसके परिणामस्वरूप विश्व में आतंकवाद एवं उग्रवाद ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। आतंकवाद एवं उग्रवाद की समस्या पूरे विश्व की समस्या है जो सभी जाति, धर्म, समुदाय के सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक संरचना को प्रभावित करती है और जो सामाजिक तनाव की स्थिति उत्पन्न किया है।

यह परिस्थिति विश्व के सभी बड़े-छोटे, गरीब-अमीर राष्ट्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दिया है जो विश्व के विकास में विनाशकारी सिध्द हो रहा है। अविकसित एवं अर्ध्दविकसित राष्ट्रों में यह स्थिति बहुत ही विकराल है जहां पर विकास के विशेष कोश को गलत तरीके से मोड़कर भ्रष्टाचार की ओर ले जाया जाता है तथा राष्ट्र का विकास नहीं हो पाता है जो एक विकराल समस्या का रूप धारण कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के उक्त कन्वेंशन के प्रस्तावना जो भारत के द्वारा 31 अक्टूबर 2003 को स्वीकार किया गया है। जिसमें स्पष्ट किया गया कि भारत में भ्रष्टाचार से अस्थिरिता की स्थिति उत्पन्न की जा रही है जो लोकतांत्रिक, सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्यों, को ह्रास की ओर अग्रसित कर रहा है। जिसके चलते कानून एवं न्यायायिक प्रणाली के सम्मान के प्रतिकूल कार्य किया जा रहा है।
कन्वेंशन में यह भी स्पष्ट हुआ था कि भ्रष्टाचार के चलते विश्व संकट के दौर से गुजर रही है। भ्रष्टाचार विरोधी, मशीनरी भ्रष्टाचार को रोकने में असफल सिध्द हो रही है। इसलिए कन्वेंशन ने भ्रष्टाचार को एक अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा मानते हुए भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के रूप में प्रतिपादित किया गया।

अनुच्छेद 6 (2) भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र की घोषणा यह स्पष्ट करता है कि सभी राष्ट्र जो इस मसौदे को स्वीकार किये हैं उन्हें अपने देश के अन्दर स्थानीय एवं संवैधानिक कानून के दायरे में एक भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू करें। जिसकी प्रयिा न्यायपालिका के प्रक्रिया में निहित हो तथा भ्रष्टाचार निवारण के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिसके अन्तर्गत इस विशेष कार्य दक्ष व्यक्तियों, सर्तकता अधिकारियों एवं न्यायायिक पदाधिकारियों के संयुक्त कार्यक्षेत्र को निर्धारित करते हुए भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू किया जाए तथा भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम को सुनियोजित ढंग से अमल में लाने के लिए विशेष प्रशिक्षण एवं संस्था की व्यवस्था करना आवश्यक है। अनुच्छेद 7(4) एवं 8 (2) संयुक्त राष्ट्र संघ भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन के अन्तर्गत सम्पादित करने वाले राष्ट्र को अपने स्थानीय कानून के अनुकूल एवं कानूनी व्यवस्था को मजबूत करते हुए भ्रष्टाचार के विरुध्द सशक्त कानून लागू करने पर बल दिया साथ ही कन्वेंशन में न्यायायिक एवं कानूनी संस्थान में एक मानक स्थापित करने के लिए आचरण कोड लागू करने तथा कानून को प्रभावशाली ढंग से लागू करने पर जोर दिया गया। अनुच्छेद 12 संयुक्त राष्ट्र संघ भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन के अन्तर्गत यह स्पष्ट है कि निजी क्षेत्र के संस्थानों के अन्तर्गत भी भ्रष्टाचार विरोधी कानून प्रभावशाली ढंग से लागू हो तथा निजी क्षेत्र के अन्तर्गत निजी संस्थानों की पहचान को बरकरार रखते हुए भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू किया जाए ताकि समाज के निजी या सरकारी क्षेत्र से भ्रष्टाचार का उन्मूलन हो सके।

उक्त कन्वेंशन के अनुच्छेद 13 एवं 34 के प्रावधान के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक राष्ट्र अपने देश के अन्तर्गत सिविल सोसाइटी, गैरसरकारी संस्थान एवं समुदाय आधारित संगठन को भ्रष्टाचार के विरुध्द लड़ाई में जोड़ने के लिए बल दिया है तथा आम जनता के द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी कानून एवं नियमांकन निर्धारित किया जाना चाहिए।  संयुक्त राष्ट्र संघ के भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन में शिकायतों का अनुसंधान तथा सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के विरुध्द दण्डित किये जाने के उद्देश्य से भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार लागू किया जाना चाहिए यदि भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार के अधिकारी एवं पदाधिकारी को भ्रष्टाचार में लिप्त होने की शिकायत की स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 136, 226 एवं 32 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार के पदाधिकारी के विरुध्द माननीय उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय संज्ञान लेते हुए दण्डित करने का प्रावधान उक्त कन्वेंशन में प्रस्तावित किया गया। इसी संदर्भ को लेकर भारत में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 लागू किया गया लेकिन इसके बावजूद भी भ्रष्टाचार उन्मूलन में कारगर परिणाम नहीं आने के चलते सिविल सोसायटी एवं गैरसरकारी संस्थानों के संयुक्त पहल से भारत में लोकपाल गठन करने के लिए मांग एवं आंदोलन किया जाने लगा। इसी की व्युतपत्ति जनलोकपाल बिल 2011 है।

जन लोकपाल बिल भारत में नागरिक समाज द्वारा प्रस्तावित भ्रष्टाचार निवारण बिल का मसौदा है। यह सशक्त जनलोकपाल के स्थापना का प्रावधान करता है जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जनलोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना किसी से अनुमति लिये ही अभियोग चलाने की शक्ति होगी। भ्रष्टाचार विरोधी भारत (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) नामक गैरसरकारी सामाजिक संगठन का निर्माण करेंगे। संतोष हेगड़े, वरिष्ठ अधिवक्ता, प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी ने यह बिल भारत के विभिन्न सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किया था। इसे लागू कराने के लिए सुप्रसिध्द सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में अनशन शुरू किया गया था। 16 अगस्त में हुए जनलोकपाल बिल आंदोलन 2011 को मिले व्यापक जनसमर्थन ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार को संसद में प्रस्तुत सरकारी लोकपाल बिल के बदले एक सशक्त लोकपाल के गठन के लिए सहमत होना पड़ा।

जनलोकपाल विधेयक के अनुसार केन्द्र में लोकपाल और रायों में लोकायुक्त का गठन हो यह संस्था निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र रहे। किसी भी मुकद्दमे की जांच 3 महीने के अंदर पूरा करने और सुनवाई अगले 6 महीने के अन्दर आवश्यक रूप से पूरी की जाए। भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को एक साल के लिए अंदर जेल भेजे जाने का प्रस्ताव किया गया। भ्रष्टाचार के कारण से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसकी क्षतिपूर्ति दोषी से किया जाये। अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल के दोषी अधिकारी पर जुर्माना लगाने एवं शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति करने का प्रस्ताव दिया गया। लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीश, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर संयुक्त रूप से करने तथा राजनीतिज्ञों का कोई हस्तक्षेप नहीं करने पर बल दिया गया। लोकपाललोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होना चाहिए तथा लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त एवं दण्डित करने का प्रस्ताव दिया गया। सीवीसी, गुप्तचर विभाग और सीबीआई के भ्रष्टाचार विरोधी विभाग का लोकपाल में विलय करने का प्रस्ताव दिया गया है। लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकद्दमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था देने का प्रस्ताव जनलोकपाल विधेयक में दिया गया है।

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें रायसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वही प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी भी मामले की जांच शुरू करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।  सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र क लोग मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे।

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें रायसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेगी वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी मामले की जाँच शुरू करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति नहीं है। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास सिफारिश भेज सकता है जहां तक मंत्रिमंडल के सदस्यों का सवाल है इसी पर प्रधानमंत्री फैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुध्द कार्रवाई की क्षमता होगी सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा, बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी। अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भेजा जा सकता है, लेकिन जन लोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वालों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा। जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री समेत नेता अधिकारी एवं न्यायाधीश सभी आएंगें। लोकपाल में तीन सदस्य होगें जो सभी सेवानिवृत न्यायाधीश होंगे लेकिन जनलोकपाल में दस सदस्य होंगे जिसका एक अध्यक्ष होगा चार सदस्यों की कानूनी पृष्ठभूमि होना अनिवार्य है। बाकी सदस्यों का चयन अन्य क्षेत्रों से गुणवत्ता के अधार पर किये जाने का प्रस्ताव है। सरकार के द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधामंत्री दोनों सदनों के नेता एवं विपक्ष के नेता कानून और गृह मंत्री है। वहीं जनलोकपाल बिल में न्याययिक क्षेत्र के लोग, चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे। लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए 6 महीने से लेकर एक साल तक का समय निर्धारित किया गया है। जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल के अन्दर जांच एवं अदालती कार्रवाई पूरी हो जानी चाहिए। सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाह और जज के खिलाफ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाह एवं जजों के खिलाफ भी जांच करने का अधिकार शामिल है।

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है, वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। साथ ही घोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है। ऐसी स्थिति में जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निवारण शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है नहीं है क्योंकि अपराधिक कानूनी प्रावधान के अन्तर्गत व्यक्तिगत अपराध को रोकने का सशक्त प्रावधान है लेकिन अपराधियों को विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले अपराधिक चरित्र के पदाधिकारी, पुलिस राजनीतिज्ञ एवं अपराधियों के मिलीभगत से भ्रष्टाचार के व्यापार को आगे बढ़ाया गया है। इसमें सिंडिकेट माफियागिरोह एवं असामाजिक तत्वों की साठ-गांठ मुख्य भूमिका रहती है। जिनका गठजोड़ सरकारी महकमे से सीधे तौर पर बना रहता है और कुछ राजनीतिज्ञ इन भ्रष्टाचारियों को संरक्षण प्रदान करते हैं।
भ्रष्टाचार का मुद्दा वर्तमान में एक वैश्विक मुद्दा बन गया है। इस सवाल को लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव कौफी-अनान ने एक कंवेशन आयोजन करके यह स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार का प्लेग पूरे दुनिया में बड़े पैमाने पर सामाजिक मूल्यों को तोड़ रहा है तथा इसके कुप्रभाव से पूरे विश्व का सामाजिक एवं आर्थिक संतुलन खतरे में पड़ गया है जिसके परिणामस्वरूप विश्व में आतंकवाद एवं उग्रवाद ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। आतंकवाद एवं उग्रवाद की समस्या पूरे विश्व की समस्या है जो सभी जाति, धर्म, समुदाय के सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक संरचना को प्रभावित करती है और जो सामाजिक तनाव की स्थिति उत्पन्न किया है।

यह परिस्थिति विश्व के सभी बड़े-छोटे, गरीब-अमीर राष्ट्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दिया है जो विश्व के विकास में विनाशकारी सिध्द हो रहा है। अविकसित एवं अर्ध्दविकसित राष्ट्रों में यह स्थिति बहुत ही विकराल है जहां पर विकास के विशेष कोश को गलत तरीके से मोड़कर भ्रष्टाचार की ओर ले जाया जाता है तथा राष्ट्र का विकास नहीं हो पाता है जो एक विकराल समस्या का रूप धारण कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के उक्त कन्वेंशन के प्रस्तावना जो भारत के द्वारा 31 अक्टूबर 2003 को स्वीकार किया गया है। जिसमें स्पष्ट किया गया कि भारत में भ्रष्टाचार से अस्थिरिता की स्थिति उत्पन्न की जा रही है जो लोकतांत्रिक, सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्यों, को ह्रास की ओर अग्रसित कर रहा है। जिसके चलते कानून एवं न्यायायिक प्रणाली के सम्मान के प्रतिकूल कार्य किया जा रहा है।
कन्वेंशन में यह भी स्पष्ट हुआ था कि भ्रष्टाचार के चलते विश्व संकट के दौर से गुजर रही है। भ्रष्टाचार विरोधी, मशीनरी भ्रष्टाचार को रोकने में असफल सिध्द हो रही है। इसलिए कन्वेंशन ने भ्रष्टाचार को एक अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा मानते हुए भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के रूप में प्रतिपादित किया गया।

अनुच्छेद 6 (2) भ्रष्टाचार विरोधी संयुक्त राष्ट्र की घोषणा यह स्पष्ट करता है कि सभी राष्ट्र जो इस मसौदे को स्वीकार किये हैं उन्हें अपने देश के अन्दर स्थानीय एवं संवैधानिक कानून के दायरे में एक भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू करें। जिसकी प्रयिा न्यायपालिका के प्रक्रिया में निहित हो तथा भ्रष्टाचार निवारण के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिसके अन्तर्गत इस विशेष कार्य दक्ष व्यक्तियों, सर्तकता अधिकारियों एवं न्यायायिक पदाधिकारियों के संयुक्त कार्यक्षेत्र को निर्धारित करते हुए भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू किया जाए तथा भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम को सुनियोजित ढंग से अमल में लाने के लिए विशेष प्रशिक्षण एवं संस्था की व्यवस्था करना आवश्यक है। अनुच्छेद 7(4) एवं 8 (2) संयुक्त राष्ट्र संघ भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन के अन्तर्गत सम्पादित करने वाले राष्ट्र को अपने स्थानीय कानून के अनुकूल एवं कानूनी व्यवस्था को मजबूत करते हुए भ्रष्टाचार के विरुध्द सशक्त कानून लागू करने पर बल दिया साथ ही कन्वेंशन में न्यायायिक एवं कानूनी संस्थान में एक मानक स्थापित करने के लिए आचरण कोड लागू करने तथा कानून को प्रभावशाली ढंग से लागू करने पर जोर दिया गया। अनुच्छेद 12 संयुक्त राष्ट्र संघ भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन के अन्तर्गत यह स्पष्ट है कि निजी क्षेत्र के संस्थानों के अन्तर्गत भी भ्रष्टाचार विरोधी कानून प्रभावशाली ढंग से लागू हो तथा निजी क्षेत्र के अन्तर्गत निजी संस्थानों की पहचान को बरकरार रखते हुए भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू किया जाए ताकि समाज के निजी या सरकारी क्षेत्र से भ्रष्टाचार का उन्मूलन हो सके।

उक्त कन्वेंशन के अनुच्छेद 13 एवं 34 के प्रावधान के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक राष्ट्र अपने देश के अन्तर्गत सिविल सोसाइटी, गैरसरकारी संस्थान एवं समुदाय आधारित संगठन को भ्रष्टाचार के विरुध्द लड़ाई में जोड़ने के लिए बल दिया है तथा आम जनता के द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी कानून एवं नियमांकन निर्धारित किया जाना चाहिए।  संयुक्त राष्ट्र संघ के भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन में शिकायतों का अनुसंधान तथा सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के विरुध्द दण्डित किये जाने के उद्देश्य से भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार लागू किया जाना चाहिए यदि भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार के अधिकारी एवं पदाधिकारी को भ्रष्टाचार में लिप्त होने की शिकायत की स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 136, 226 एवं 32 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकार के पदाधिकारी के विरुध्द माननीय उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय संज्ञान लेते हुए दण्डित करने का प्रावधान उक्त कन्वेंशन में प्रस्तावित किया गया। इसी संदर्भ को लेकर भारत में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 लागू किया गया लेकिन इसके बावजूद भी भ्रष्टाचार उन्मूलन में कारगर परिणाम नहीं आने के चलते सिविल सोसायटी एवं गैरसरकारी संस्थानों के संयुक्त पहल से भारत में लोकपाल गठन करने के लिए मांग एवं आंदोलन किया जाने लगा। इसी की व्युतपत्ति जनलोकपाल बिल 2011 है।

जन लोकपाल बिल भारत में नागरिक समाज द्वारा प्रस्तावित भ्रष्टाचार निवारण बिल का मसौदा है। यह सशक्त जनलोकपाल के स्थापना का प्रावधान करता है जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जनलोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना किसी से अनुमति लिये ही अभियोग चलाने की शक्ति होगी। भ्रष्टाचार विरोधी भारत (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) नामक गैरसरकारी सामाजिक संगठन का निर्माण करेंगे। संतोष हेगड़े, वरिष्ठ अधिवक्ता, प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी ने यह बिल भारत के विभिन्न सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किया था। इसे लागू कराने के लिए सुप्रसिध्द सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में अनशन शुरू किया गया था। 16 अगस्त में हुए जनलोकपाल बिल आंदोलन 2011 को मिले व्यापक जनसमर्थन ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार को संसद में प्रस्तुत सरकारी लोकपाल बिल के बदले एक सशक्त लोकपाल के गठन के लिए सहमत होना पड़ा।

जनलोकपाल विधेयक के अनुसार केन्द्र में लोकपाल और रायों में लोकायुक्त का गठन हो यह संस्था निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र रहे। किसी भी मुकद्दमे की जांच 3 महीने के अंदर पूरा करने और सुनवाई अगले 6 महीने के अन्दर आवश्यक रूप से पूरी की जाए। भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को एक साल के लिए अंदर जेल भेजे जाने का प्रस्ताव किया गया। भ्रष्टाचार के कारण से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसकी क्षतिपूर्ति दोषी से किया जाये। अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल के दोषी अधिकारी पर जुर्माना लगाने एवं शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति करने का प्रस्ताव दिया गया। लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीश, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर संयुक्त रूप से करने तथा राजनीतिज्ञों का कोई हस्तक्षेप नहीं करने पर बल दिया गया। लोकपाललोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होना चाहिए तथा लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त एवं दण्डित करने का प्रस्ताव दिया गया। सीवीसी, गुप्तचर विभाग और सीबीआई के भ्रष्टाचार विरोधी विभाग का लोकपाल में विलय करने का प्रस्ताव दिया गया है। लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकद्दमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था देने का प्रस्ताव जनलोकपाल विधेयक में दिया गया है।

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें रायसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वही प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी भी मामले की जांच शुरू करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।  सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र क लोग मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे।

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें रायसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेगी वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी मामले की जाँच शुरू करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति नहीं है। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास सिफारिश भेज सकता है जहां तक मंत्रिमंडल के सदस्यों का सवाल है इसी पर प्रधानमंत्री फैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुध्द कार्रवाई की क्षमता होगी सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा, बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी। अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भेजा जा सकता है, लेकिन जन लोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वालों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा। जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री समेत नेता अधिकारी एवं न्यायाधीश सभी आएंगें। लोकपाल में तीन सदस्य होगें जो सभी सेवानिवृत न्यायाधीश होंगे लेकिन जनलोकपाल में दस सदस्य होंगे जिसका एक अध्यक्ष होगा चार सदस्यों की कानूनी पृष्ठभूमि होना अनिवार्य है। बाकी सदस्यों का चयन अन्य क्षेत्रों से गुणवत्ता के अधार पर किये जाने का प्रस्ताव है। सरकार के द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधामंत्री दोनों सदनों के नेता एवं विपक्ष के नेता कानून और गृह मंत्री है। वहीं जनलोकपाल बिल में न्याययिक क्षेत्र के लोग, चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे। लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए 6 महीने से लेकर एक साल तक का समय निर्धारित किया गया है। जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल के अन्दर जांच एवं अदालती कार्रवाई पूरी हो जानी चाहिए। सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाह और जज के खिलाफ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाह एवं जजों के खिलाफ भी जांच करने का अधिकार शामिल है।

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है, वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। साथ ही घोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है। ऐसी स्थिति में जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निवारण शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है

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